Puerperal Fever प्रसूति बुखार ( ज़च्चा बुखार ]
Puerperal fever: Fever that lasts for more than 24 hours within the first 10 days after a woman has had a baby. Puerperal fever is due to an infection, most often of the placental site within the uterus.
प्रसूति बुखार ( ज़च्चा बुखार ]
Puerperal Fever: क्या होता है सूतिका ज्वर, जिससे तड़प जाती हैं महिलाएं सूतिका ज्वर के लक्षण, कारण और उपाय
यदि गर्भवती महिला को बच्चे के जन्म के बाद हल्के या तेज बुखार अनुभव हो तो इस बात को बिल्कुल भी अनदेखा ना करें। क्योंकि मात्र 3 से 4 दिन में यह बुखार सूतिका ज्वर का रूप ले लेता है|
एक होता है साधारण बुखार। इसमें खांसी और सिरदर्द जैसी समस्या हो भी सकती है और नहीं भी हो सकती। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि तेज जुकाम और खांसी के कारण बुखार बढ़ रहा हो। एक बुखार ऐसा होता है, जिसमें बहुत तेज सर्दी लगती है। इसमें रजाई ओढ़ने का मन करता और कई बार रजाई में भी सर्दी लगती है। ऐसा ही बुखार गर्भवती महिलाओं को होने का खतरा रहता है। इसीलिए उन्हें ठंड से बचने की अधिक सलाह दी जाती है।
गर्भवती महिलाओं को होनेवाला ज्वर जब गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है तो इसे इसे सूतिका ज्वर के नाम से जाना जाता है। हालांकि सामान्य व्यक्ति में यह रोग होने पर इसे सरसाम ज्वार के नाम से जाना जाता है। आइए, जानते हैं कि क्या होते हैं इस सूतिका ज्वर के लक्षण और किन बातों का रखना चाहिए ध्यान...
सबसे पहले जानें सूतिका ज्वर के लक्षण
जब बुखार के दौरान वात, पित्त और कफ तीनों में वृद्धि हो जाती है। इस कारण बुखार की तीव्रता में और अधिक वृद्धि होती है। रोगी को सर्दी लगने लगती है। इतनी अधिक सर्दी लगती है कि गर्भवती महिला ठंड से कांपने लगती है।
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नाड़ी बहुत तेज चलने लगती है। पेट में नाभि के आस-पास बहुत तेज दर्द उठने लगता है। सर्दी के कारण कई महिलाओं के दांत किटकिटाने लगते हैं। उन्हें लगातार जम्हाई आने की समस्या हो सकती है, साथ ही स्वाद का पता उन्हें नहीं चल पाता है।
सूतिका ज्वर के कारण
-गर्भवती महिलाओं को सूतिका ज्वर आमतौर पर प्रसव यानी बच्चे को जन्म देने के 3 से 4 दिन के अंदर होता है। इस बुखार के मुख्य कारणों में से एक कारण प्रसव के दौरान बच्चे के नारबेल का कुछ भाग गर्भाशय में रह जाना होता है।
-यदि बच्चे के जन्म के समय नाल काटने में किसी तरह की कोई गलती हो जाए और नाल का कुछ हिस्सा महिला के गर्भाशय में रह जाए तो यह गर्भनाल का यह भाग सड़ने लगता है। इस कारण महिला को पहले हल्का-हल्का बुखार रहता है और फिर एकाएक यह बढ़ने लगता है।
-बच्चे के जन्म के तुरंत बाद बुखार आना कई बार इस बात का संकेत भी होता है कि गर्भावस्था के दौरान महिला को ठीक से देखभाल नहीं मिली है। साथ ही जिन महिलाओं को बच्चे के जन्म के बाद उचित देखभाल नहीं मिलती, उनमें भी सूतिका ज्वर होने की संभावना अधिक होती है।
महिला के शरीर में होनेवाले बदलाव
-प्रसव के बाद यदि महिला को सूतिका ज्वर हो जाए तो उसके स्तनों से दूध आना बंद हो जाता है। इसके साथ ही बुखार के लक्षण लगातार दिखते रहते हैं।
-इसके साथ ही महिला के शरीर से प्रसव के बाद होनेवाला स्त्राव और पसीना आना भी बंद हो जाता है। पेट में उठनेवाला तेज दर्द महिला को बहुत अधिक कमजोर और असहाय महसूस कराता है।
-यदि किसी महिला को प्रसव के बाद हल्का बुखार लगे तो इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। बल्कि तुरंत डॉक्टर से बात करनी चाहिए। क्योंकि 3 से 4 दिन के अंदर यह बुखार गंभीर रूप ले लेते है और अगर सही उपचार ना मिले तो सप्ताहभर के अंदर महिला की जान चली जाती है।
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सूतिका या प्रसूत ज्वर के आयुर्वेदिक उपचार
सूतिका ज्वर में दशमूल के गरमा गर्म काढ़े में घी मिलाकर पिलाने से ज्वर इत्यादि सूतिका रोग नष्ट हो जाते हैं।दशमूल कि दसों दवाओं को दूध मी पकाकर और मिश्री मिलकर सेवन करने से भी प्रसूता स्त्रियों के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं।
दशमूल के काढ़े कि भांति ही शास्त्रीय औषधि –
” दारवादी क्वाथ ” प्रसुताओ के सेहत के लिए अति लाभकारी है ।इसके सेवन से ज्वर ,खांसी ,शूल दर्द,बेहोसी,कंपकंपी,सिरदर्द,अनाप-शनाप बकना,प्यास,दाह,जलन,तन्द्रा,पतले दस्त और वाट और कफ से उतपन्न हुए प्रसूता के सभी रोग जड़ मूल से नष्ट हो जाते हैं ।परीक्षित है ।
तपाया हुवा लोहां, मुंग के युष में भुझाकर पीलाने से सूतिका रोग नष्ट हो जाता है।
यदि प्रसुतावस्थामें अधिक रक्त यानि खून प्रवाह,ज्वर,खांसी तथा सर्वांग शूल कि स्थिति होतो निम्नाकित औषधि व्यवस्था करना लाभकारी है।
नागकेशर का चूरन एक माशा,
मकरध्वज चार चावल भर,
प्रताप लंकेश्वर रस एक रति,
सभी को एकत्र घोंटकर तथा आवालें के मुरबो में मिलाकार सेवन करवाए तथा ऊपर से दशमूलारिष्ट या जिरकधारिष्ट पिलायें। इससे बहुत ही ज्यादा लाभ होगा ।
विशेष
मकरध्वज रस में सिंदूर,स्वर्ण भष्म ,लोह्भषम,लॉन्ग,कपूर,जायफल,कस्तूरी समान भाग का योग रहता है ।इसे पान के स्वरस में घोटकर बनाते हैं।2-3 रति किगोली बकरी के दूध अथवा अन्य उचित अनुपान के साथ सेवन करने से जीर्ण ज्वर ,विषम ज्वर आदि को भी दूर करता है तथा सशक्ति भी प्रदान करता है ।
अस्वीकरण – इस लेख में उपलब्ध जानकारी का उद्देश्य केवल शैक्षिक है और इसे चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं ग्रहण किया जाना चाहिए | कृपया किसी भी जड़ी - बूटी, हर्बल उत्पाद या उपचार को आजमाने से पहले एक विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करें |
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(1) अन्य किसी भी प्रकार के फालतू के शौक पालने से पहले अपने स्वास्थ्य की रक्षा के महत्व को समझना सीखें।
(2) पेशेंट्स को समझना होगा कि महंगे वाहन, आकर्षक कपड़े, आलीशान मकान साज श्रंगार, शारीरिक सौंदर्य और करोडों का बैंक बैलेंस भी कोई मायने नहीं रखते, यदि उन्होंने अपना स्वास्थ्य खो दिया। विशेषकर यदि पाचन शक्ति कमजोर हो चुकी है, तो जीवन निरर्थक है।
(3) इसलिये यदि आपको पूर्ण आयु तक सम्पूर्णता से स्वस्थ तथा जिंदादिल जिंदगी जीनी है तो खाली पेट चाय, कॉफी, धूम्रपान, गुटखा, शराब आदि सभी प्रकार के नशे की लतों को तुरंत त्याग देना चाहिये और इनके बजाय उत्साहवर्धक साहित्य खरीद कर पढने, पौष्टिक खाद्य व पेय पदार्थों और आरोग्यकारी, पुष्टिकारक तथा बलवर्धक औषधियों का सेवन करने पर अपनी कमाई का कुछ हिस्सा उदारतापूर्वक खर्च करते रहना चाहिए।
(4) इससे आपको अपने जीवन में ग्लानि, दुर्बलता, स्मरण शक्ति का लोप आदि की शिकायतें कभी नहीं होती हैं।
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