टाइफाइड बुखार के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक उपचार
इसे आंत्र ज्वर के नाम से भी जाना जाता है। औद्योगिक देशों में यह बीमारी दुर्लभ है, लेकिन भारत जैसे विकासशील देशों में यह अभी भी एक गंभीर खतरा बना हुआ है, खासकर बच्चों के लिए।
टाइफाइड बुखार क्या है?
इसे आंत्र ज्वर के नाम से भी जाना जाता है। औद्योगिक देशों में यह बीमारी दुर्लभ है, लेकिन भारत जैसे विकासशील देशों में यह अभी भी एक गंभीर खतरा बना हुआ है, खासकर बच्चों के लिए।
कारक जीव
साल्मोनेला टाइफी- यह एक जीवाणु है जो रक्त और आंत्र पथ को संक्रमित करता है।
ऊष्मायन अवधि
6 से 30 दिन या 1-3 सप्ताह के बाद लक्षण प्रकट होते हैं।
संचरण का तरीका
यह निम्नलिखित तरीकों से फैलता है-
मल-मौखिक संचरण मार्ग-
बैक्टीरिया दूषित भोजन या पानी के माध्यम से फैलता है और संक्रमित व्यक्ति के सीधे संपर्क से भी फैल सकता है। यह फेको-ओरल मार्ग से भी फैल सकता है, यानी यह संक्रमित व्यक्ति के मल और कभी-कभी मूत्र के माध्यम से भी फैलता है।
टाइफाइड वाहक
एंटीबायोटिक दवाओं से उपचार के बावजूद, कई पीड़ितों के आंतों या पित्ताशय में बैक्टीरिया मौजूद रहते हैं।
ये वाहक मल के माध्यम से जीवाणुओं को छोड़ते रहते हैं, तथा दूसरों को भी संक्रमित करने में सक्षम होते हैं।
संकेत और लक्षण-
व्यक्ति को निम्नलिखित संकेत और लक्षण दिखाई दे सकते हैं-
प्रारंभिक संक्रमण
प्रारंभिक अवस्था में व्यक्ति को निम्न अनुभव हो सकता है-
- हल्का बुखार जो प्रतिदिन बढ़ता है, 104.9 F (40.5 C) तक पहुंच सकता है
- सिरदर्द
- मांसपेशियों में दर्द
- कमज़ोरी और थकान
- बहुत ज़्यादा पसीना आना
- सूखी खाँसी
- भूख में कमी या भूख न लगना
- वजन में कमी
- पेटदर्द
- कब्ज या दस्त
संक्रमण का अंतिम चरण-
यदि व्यक्ति शुरुआती लक्षणों को नजरअंदाज करता है या उपचार में देरी होती है यानी देखभाल में कमी होती है तो व्यक्ति को यह अनुभव हो सकता है-
- मन की अशांत स्थिति
- टाइफाइड अवस्था - जहां रोगी निश्चल और थका हुआ पड़ा रहता है
- इसके अलावा, इस समय अक्सर जीवन-धमकाने वाली जटिलताएं विकसित हो जाती हैं।
कुछ लोगों में, बुखार कम होने के 2 सप्ताह बाद भी संकेत और लक्षण वापस आ सकते हैं।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण-
- आयुर्वेद में टाइफाइड बुखार को "सन्निपातज ज्वर" से जोड़ा गया है।
- आचार्य चरक ने इसे ' संतत ज्वर' बताया है - विषम ज्वर का एक प्रकार, जो टाइफाइड से भी समानता रखता है।
- ऐसा कहा जाता है कि रसवाहा स्त्रोत या रक्त वाहिकाओं के माध्यम से असंतुलित रूप से फैलने वाला ज्वर या बुखार पूरे शरीर में अकड़न पैदा करता है। इसके लक्षण बहुत जल्दी प्रकट होते हैं और या तो ठीक हो जाते हैं या 7वें, 10वें या 12वें दिन रोगी की मृत्यु हो जाती है। इस तरह के बुखार का सामना करना बहुत मुश्किल है।
- यदि सन्निपात प्रकार के ज्वर में सम्मिलित दोष काल या ऋतु, दुष्य या धातुओं के समान हों तथा व्यक्ति की प्रकृति के समान हों तो यह स्थिति असाध्य या लाइलाज होती है।
- यदि धातुएं तथा अपशिष्ट पदार्थ जैसे मूत्र, मल तथा वायु शुद्ध हो जाएं तो 7 वें , 10 वें तथा 12 वें दिन बुखार उतर जाता है । लेकिन यदि शुद्ध न हो तो यह बुखार उन दिनों रोगी के लिए प्राणघातक होता है। यदि ये धातुएं आंशिक रूप से भी शुद्ध हो जाएं तो भी रोगी की मृत्यु हो जाती है।
- इसलिए अपनी धातुओं और मलों (उत्सर्जन तंत्र) को शुद्ध करने के लिए उपचार और आहार-विहार का पालन करना चाहिए।
टाइफाइड बुखार के लिए आयुर्वेदिक टिप्स
- आयुर्वेद को चुनने से शरीर के बढ़ते तापमान पर नियंत्रण रखने में मदद मिलती है और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली भी मजबूत होती है।
- आयुर्वेद संहिता में निम्नलिखित पत्तियों के काढ़े (गाढ़ा द्रव्य) के उपयोग की सिफारिश की गई है - पटोला (नुकीला लौकी) और कटुकोरोहिनी (पिक्रोरिज़ा कुरोआ) के पत्ते।
- अन्य विकल्प निम्बा - नीम (अजादिराच्टा इंडिका), पटोला (नुकीला लौकी), त्रिफला , किशमिश, मुस्ता (साइपरस रोटंडस) और वत्सका (होलारेना एंटीडिसेंटेरिका) का भी उपयोग किया जा सकता है।
आहार अनुशंसाएँ (आहार)
- भारी भोजन से बचना चाहिए
- अदरक और नींबू के साथ पका हुआ चावल का दलिया ( कांजी ) और खिचड़ी खाना चाहिए ।
- भरपूर मात्रा में तरल पदार्थ का सेवन करें।
- तेलयुक्त एवं मसालेदार भोजन से सख्ती से बचें।
- पैकेज्ड खाद्य पदार्थों या जंक फूड से बचें
विहार या जीवनशैली में परिवर्तन
- पर्याप्त आराम लेने की सलाह दी जाती है।
- सिर धोने या ठंडे पानी से स्नान करने से बचें।
- दिवास्वप्न से बचना चाहिए या दिन में सोने या अत्यधिक सोने से बचना चाहिए
- स्वच्छता बनाए रखें जैसे कंबल या चादर को बार-बार बदलना और मौखिक स्वच्छता भी बनाए रखना।
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- इसके बाद पेशेंट के लक्षणों और बीमारी के बारे में पेशेंट से कम से कम 15--20 मिनट मो. पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करता हूं।
- पेशेंट के लक्षणों और उसकी सभी तकलीफों के विवरण के आधार पर प्रत्येक पेशेंट का विश्लेषण करके, पेशेंट के लिये वांछित (जरूरत के अनुसार) ऑर्गेनिक देसी जड़ी-बूटियों, स्वर्ण, रजत और मोती युक्त रसायनों तथा होम्योपैथिक व बायोकेमिक दवाइयों की सूची बना करके, दवाइयों का अंतिम मूल्य निर्धारण किया जाता है।
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(1) अन्य किसी भी प्रकार के फालतू के शौक पालने से पहले अपने स्वास्थ्य की रक्षा के महत्व को समझना सीखें।
(2) पेशेंट्स को समझना होगा कि महंगे वाहन, आकर्षक कपड़े, आलीशान मकान साज श्रंगार, शारीरिक सौंदर्य और करोडों का बैंक बैलेंस भी कोई मायने नहीं रखते, यदि उन्होंने अपना स्वास्थ्य खो दिया। विशेषकर यदि पाचन शक्ति कमजोर हो चुकी है, तो जीवन निरर्थक है।
(3) इसलिये यदि आपको पूर्ण आयु तक सम्पूर्णता से स्वस्थ तथा जिंदादिल जिंदगी जीनी है तो खाली पेट चाय, कॉफी, धूम्रपान, गुटखा, शराब आदि सभी प्रकार के नशे की लतों को तुरंत त्याग देना चाहिये और इनके बजाय उत्साहवर्धक साहित्य खरीद कर पढने, पौष्टिक खाद्य व पेय पदार्थों और आरोग्यकारी, पुष्टिकारक तथा बलवर्धक औषधियों का सेवन करने पर अपनी कमाई का कुछ हिस्सा उदारतापूर्वक खर्च करते रहना चाहिए।
(4) इससे आपको अपने जीवन में ग्लानि, दुर्बलता, स्मरण शक्ति का लोप आदि की शिकायतें कभी नहीं होती हैं।
(5) कौन मूर्ख व्यक्ति ऐसा होगा, जो स्वस्थ एवं तंदुरुस्त नहीं रहना चाहेगा?
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